कभी मन के काले कोनों में झांक के देखो
चेहरे की चमक तुम्हें फीकी लगेगी
ये हंसी तुम्हें झूठी लगेगी
खुशबु फूलों की चुभती सी लगेगी।
कभी मन की उलझी डोर में उलझ के देखो
सुलझी ज़िन्दगी से बेहतर, उलझनें लगेंगी
पर्दानशीं को बेपर्दा क्यों करूँ
जब बेपर्दा उलझन ही खूबसूरत हो।
तुम कभी मेरी आँखों के बीच अँधेरे में झांको
अँधेरे से ही तो देखता आया हूँ
कई सदियों से अँधेरा बनकर
शायद, रोशनी को ये गवारा न हुआ।
तुम रोशनी हो।
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